Monday, April 5, 2010


नन्हीं सी जान
चली हवा तो मैं डर गयी ,
लगा कहीं उजड़ न जाए मेरा घर ,
एक -एक तिनका मुहं से रख जोड़ रही थी मैं अपना घर .
फिर लगा डर न क्लुच हो जाए मेरे राजदुलारे को जो बैठा है उस नाज़ुक घर पर ,
जो नज़ारा देखा मैंने ,चौंक गयीं मेरी आँखे देख कर ,
सर -सर चली हवा और मेघ हो गए काले ,
दिल धक् -धक् करने लगा क्या होने वाला है अब आगे ,
घनघोर हुई बारिश फिर ,
ना कर सकी मैं कुछ भी ,
वापस आई तो देख न रहा वो नाज़ुक घर न रहा मेरा सहारा ,
चींख -चींख कर रोई मैं ,कहाँ गया मेरा प्यार ,
नज़रें उठायीं तो देख एक भीगी टहनी पर ,
सहमा था मेरा लाल .
न रोक पायी मैं अपने आप को और भर गए लोचन ,
ह्रदय से लगा लिया मैंने उसको और खुश हो गया मेरा मन

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